अष्टावक्र गीता-दोहे -7
अष्टावक्र गीता-7
नमस्कार मुझको रहे,जिसका हो न विनाश।
जग-तृण-ब्रह्मा नष्ट हों, अचरज, मैं अविनाश।।
नमस्कार मुझको रहे,मैं तनधारी एक।
बिना गए-आए कहीं, व्याप्त विश्व मैं नेक।।
नमस्कार मुझको सतत,अतुल-दक्ष मम रूप।
सकल विश्व धारण करूँ, बिन तन छुए अनूप।।
है अचरज, मुझको नमन,जग से दिखे दुराव।
मनसा-वाचा-सोच ही,करती विश्व-लगाव।।
ज्ञान-ज्ञेय-ज्ञाता नहीं,सब कुछ है अज्ञान।
वही अमल मैं पूर्ण हूँ,यह मेरी पहचान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Varsha_Upadhyay
20-Feb-2024 05:12 PM
Nice
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Gunjan Kamal
20-Feb-2024 02:27 PM
👏🏻👌🏻
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Mohammed urooj khan
20-Feb-2024 12:05 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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